| 31 | जन्म दिया रात ने, सुबह ने किया जवान । दिन ढलते ही, निकल गई इसकी जान ॥ |
| 32 | तीन अक्षर का मेरा नाम, खाने के आता हूँ काम । मध्य कटे हवा हो जाता, अंत कटे तो हल कहलाता ॥ |
| 33 | कला घोडा सफ़ेद की सवारी, एक उतरा तो दूसरे की बरी ॥ |
| 34 | धूप देख मैं आ जाऊँ; छाँव देख शर्मा जाऊँ । जब हवा करे मुझे स्पर्श; मैं उसमे समा जाऊँ; बताओ क्या ॥ |
| 35 | काली तो है, पर काग़ नहीं, लंबी तो है, पर नाग नहीं । बल तो खाती, पर डोर नहीं, बांधतेतो है, पर ढोर नहीं ॥ |
| 36 | बूझो भैया एक पहेली जब काटो तो नई नवेली ॥ |
| 37 | काली-काली माँ लाल-लाल बच्चे, जिधर जाये माँ, उधर जाए बच्चे ॥ |
| 38 | दुनियाँ भर की करता सैर, धरती पे ना रखता पैर । दिन में सोता रात में जागता, रात अंधेरी मेरी बगैर, जल्दी बताओ मैं कौन ॥ |
| 39 | ऐसी कौन सी चीज है, जिसे आप खरीदते हो तो रंग काला, उपयोग करते हो तो लाल और फेंकते हो तो सफेद होता है ॥ |
| 40 | सबके ही घर ये जाये, तीन अक्षर का नाम बताए । शुरु के दो अति हो जाये, अंतिम दो से तिथि बन जाये ॥ |
| 41 | मध्य कटे तो बनता कम, अंत कटे तो कल । लेखन में मैं आती काम, सोचो तो क्या मेरा नाम ॥ |
| 42 | चार टाँग की हूँ एक नारी, छलनी सम मेरे छेद । पीड़ित को आराम मैं देती, बतलाओ भैया यह भेद ॥ |
| 43 | पानी से निकला पेड़ एक, पात नहीं पर डाल अनेक । इस पेड़ की ठंडी छाया, बैठ के नीचे उसको पाया, बताओ क्या ॥ |
| 44 | हरा चोर लाल मकान, उसमे बैठा काला शैतान । गर्मी में वह है दिखता, सर्दी में गायब हो जाता, बताओ क्या ॥ |
| 45 | काला मुंह लाल शरीर, कागज़ को वो खा जाता । रोज़ शाम को पेट फाड़कर कोई उन्हें ले जाता ॥ |
| 46 | चार कोनों का नगर बना, चार कुँए बिन पानी, चोर 18 उसमे बैठे लिए एक रानी । आया एक दरोगा, सब को पीट-पीट कर कुँए में डाला, बताओ क्या ॥ |
| 47 | सुंदर-सुंदर ख़्वाब दिखाती, पास सभी के रात में आती, थके मान्दे को दे आराम, जल्द बताओ उसका नाम ॥ |
| 48 | लंबा तन और बदन है गोल, मीठे रहते मेरे बोल, तन पे मेरे होते छेद, भाषा का मैं न करूँ भेद ॥ |
| 49 | पूंछ कटे तो सीता, सिर कटे तो मित्र, मध्य कटे तो खोपड़ी, पहेली बड़ी विचित्र ॥ |
| 50 | प्रथम कटे तो दर हो जाऊं, अंत कटे तो बंद हो जाऊं, केला मिले तो खाता जाऊं, बताओ मैं हूँ कौन ॥ |
| 51 | एक साथ आए दो भाई, बिन उनके दूर शहनाई । पीटो तब वह देते संगत, फिर आए महफ़िल में रंगत ॥ |
| 52 | दो सुंदर लड़के, दोनों एक रंग के, एक बिछड़ जाये तो दूसरा काम न आये ॥ |
| 53 | हरा आटा, लाल परांठा, मिल–जुल कर सब सखियों ने बांटा ॥ |
| 54 | एक किले के दो ही द्वार, उनमें सैनिक लकड़ीदार, टकराए जब दीवारों से, ख़त्म हो जाये उनका संसार ॥ |
| 55 | उछले दौड़े कूदे दिनभर, यह दिखने में बड़ा ही सुंदर, लेकिन नहीं ये भालू बंदर । अपनी धुन में मस्त कलंदर, इसके नाम में जुड़ा है रन, घर हैं इसके सुंदर वन, बताओ कौन ॥ |
| 56 | रंग बिरंगा बदन है इसका, कुदरत का वरदान मिला, इतनी सुंदरता पाकर भी, दो अक्षर का नाम मिला । ये वन में करता शोर, इसके चर्चे हैं हर ओर, बताओ कौन ॥ |
| 57 | न सीखा संगीत कहीं पर, न सीखा कोई गीत, लेकिन इसकी मीठी वाणी में । भरा हुआ संगीत, सुबह सुबह ये करे रियाज, मन को भाती इसकी आवाज, बताओ क्या ॥ |
| 58 | आगे ‘प‘ है मध्य में भी ‘प‘, अंत में इसके ‘ह‘ है, कटी पतंग नहीं ये भैया । न बिल्ली चूहा है; वन में पेड़ों पर रहता है, सुर में रहकर कुछ कहता है, बताओ क्या ॥ |
| 59 | एक थाल मोतियों से भरा, सबके सिर पर उल्टा धरा । चारों ओर फिरे वो थाल; मोती उससे एक ना गिरे, बताओ क्या ॥ |
| 60 | सुबह आता शाम को जाता, दिनभर अपनी चमक बरसाता । समस्त सृष्टि को देता वैभव, इसके बिना नहीं जीवन संभव, बताओ क्या ॥ |